जनसंचार माध्यमों में हिन्दी।jansanchar Madhyam Mein Hindi

  जनसंचार माध्यमों में हिन्दी (समाचार-पत्र और हिन्दी, विज्ञापन और हिन्दी, रेडियो एवं टेलीविजन में हिन्दी)

           हिन्दी के संचार माध्यम





संचार के सभी माध्यमों में हिंदी ने मजबूत पकड़ बना ली है। चाहे वह हिंदी के समाचार-पत्र हों, रेडियो हो, दूरदर्शन हो, हिंदी सिनेमा हो, विज्ञापन हो या ओटीटी हो - सर्वत्र हिन्दी छायी हुई है। वर्तमान समय में हिंदी को वैश्विक संदर्भ प्रदान करने में उसके बोलने वालों की संख्या, हिंदी फिल्में, पत्र-पत्रिकाएँ, विभिन्न हिंदी चैनल, विज्ञापन एजेंसियाँ, हिंदी का विश्वस्तरीय साहित्य तथा साहित्यकार आदि का विशेष योगदान है। इसके अतिरिक्त हिंदी को विश्वभाषा बनाने में इंटरनेट की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

आज हिंदी अभिव्यक्ति का सब से सशक्त माध्यम बन गई है। हिंदी चैनलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बाजार की स्पर्धा के कारण ही सही, अंग्रेजी चैनलों का हिंदी में रूपांतरण हो रहा है। इस समय हिंदी में भी 1 लाख से ज्यादा ब्लॉग सक्रिय हैं। अब सैकड़ों पत्र-पत्रिकाएँ इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।


हिंदी के वैश्विक स्वरूप को संचार माध्यमों में भी देखा जा सकता है। संचार माध्यमों ने हिंदी के वैश्विक रूप को गढ़ने में पर्याप्त योगदान दिया है। भाषाएँ संस्कृति की वाहक होती हैं और संचार माध्यमों पर प्रसारित कार्यक्रमों से समाज के बदलते सच को हिंदी के बहाने ही उजागर किया गया।


डिजिटल दुनिया में हिंदी की मांग अंग्रेजी की तुलना में 5 गुना ज्यादा तेज है। अंग्रेजी की तुलना में हिंदी 5 गुना तेजी से बढ़ रही है। भारत में हर पाँचवा इंटरनेट प्रयोगकर्ता हिंदी का उपयोग करता है। देश में जहाँ हिंदी सामग्री की डिजिटल मीडिया में खपत 94 फीसद की दर से बढ़ी है, वहीं अंग्रेजी सामग्री की खपत केवल 19 फीसद की दर से ही बढ़ी है।


आज स्मार्टफोन के रूप में हर हाथ में एक तकनीकी डिवाइस मौजूद है और उसमें हिंदी भी है। सभी ऑपरेटिंग सिस्टमों में हिंदी में संदेश भेजना, हिंदी की सामग्री को पढ़ना, सुनना या देखना लगभग उतना ही आसान है जितना अंग्रेजी की सामग्री को। हालांकि कंप्यूटरों पर भी हिंदी का व्यापक प्रयोग हो रहा है और इंटरनेट पर भी, लेकिन मोबाइल ने हिंदी के प्रयोग को अचानक जो गति दे दी है उसकी कल्पना अभी 5 साल पहले तक किसी ने नहीं की थी।


इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की सामग्री की वृद्धि दर प्रभावशाली है। अंग्रेजी के 19 फीसद सालाना के मुकाबले भारतीय भाषाओं की सामग्री 94 फीसद की रफ्तार से बढ़ रही है।


दूसरी ओर भारतीयों में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ा है। भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं जबकि करीब 21 प्रतिशत भारतीय हिंदी में इंटरनेट का प्रयोग करना चाहते हैं। भारतीय युवाओं के स्मार्टफोन में औसतन 32 एप होते हैं, जिसमें 8-9 हिंदी के होते हैं। भारतीय युवा यूट्यूब पर 93 फीसद हिंदी वीडियो देखते हैं।


हिंदी मीडिया के निम्न घटक हैं:


1. हिंदी फिल्में

2. हिंदी रेडियो

3. हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ 

4. हिंदी टेलीविजन

5. हिंदी साइबर मीडिया


जनसंचार की विशेषताएँ


1. जनसंचार में फीडबैक तुरंत नहीं प्राप्त होता है। जनसंचार के श्रोताओं, पाठकों और दर्शकों का दायरा बहुत व्यापक होता है। साथ ही उनका गठन भी बहुत पंचमेल होता है। जैसे किसी टेलीविजन चैनल के दर्शकों में अमीर वर्ग भी हो सकता है और गरीब वर्ग भी, शहरी वर्ग और ग्रामीण वर्ग भी, पुरुष और महिलाएं भी युवा तथा वृद्ध भी। लेकिन सभी एक ही समय टी. वी पर अपनी पसंद का कार्यक्रम देख रहे हो सकते हैं। 


2. इसी से जुड़ी जनसंचार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि जनसंचार माध्यमों के जरिये प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अंतरवैयक्तिक या समूह संचार की तुलना में जनसंचार के संदेश सबके लिए होते हैं।


3. जनसंचार संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता है। प्राप्तकर्त्ता यानी पाठक, श्रोता और दर्शक संचारक को उसकी सार्वजनिक भूमिका के कारण पहचानता है।


4. संचार के अन्य रूपों की तुलना में जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की भी जरूरत पड़ती है। औपचारिक संगठन के बिना जनसंचार माध्यमों को चलाना मुश्किल है। जैसे समाचार-पत्र किसी-न-किसी संगठन से प्रकाशित होता है या रेडियो का प्रसारण किसी रेडियो संगठन की ओर से किया जाता है। 

5. जनसंचार माध्यमों में ढेर सारे द्वारपाल (गेटकीपर) काम करते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है। किसी जनसंचार माध्यम में काम करने वाले द्वारपाल ही तय करते हैं कि वहाँ किस तरह की सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाएगी।


जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह उनकी ही जिम्मेदारी है कि वे सार्वजनिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित  करें और उसके बाद ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इजाजत दें।

जनसंचार माध्यमों के लिए समाचार लेखन




प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट प्रमुख जनसंचार माध्यम हैं। विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लिए अलग-अलग तरीके हैं। अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की अलग शैली है, जबकि रेडियो और टेलीविजन के लिए लिखना एक अलग कला है। चूंकि माध्यम अलग-अलग हैं इसलिए उनकी जरूरतें भी अलग-अलग हैं। विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन के अलग-अलग तरीकों को समझना बहुत जरूरी है। इन माध्यमों के लेखन के लिए बोलने, लिखने के अतिरिक्त पाठकों-श्रोताओं और दर्शकों की जरूरत को भी ध्यान में रखा जाता है।


समाचार अभिकरण/समाचार संस्था


समाचार संस्था (news agency) ऐसे संगठन को कहते हैं जो समाचार एकत्रित करता है और फिर उसे समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रेडियो व टेलीविजन प्रसारकों को बेचता है। समाचार संस्थाओं को कभी-कभी समाचार सेवा (news service) भी कहा जाता है। विश्व में बहुत सारी समाचार संस्थाएँ हैं, जैसे कि रॉयटर्स, पीटीआई (PTI), आईएएनएस (IANS), एएनआई (ANI), हिन्दी न्यूज-9 (HN9) इत्यादि ।

      

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विज्ञापन लेखन

वर्तमान काल में वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने एवं उनके उपभोग पर भरपूर जोर दिया जा रहा है। उत्पादक अपनी वस्तुओं की बिक्री द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाना चाहते हैं तो उपभोक्ता उनका प्रयोग कर सुख एवं संतुष्टि पाना चाहता है। उपभोक्ताओं की इसी प्रवृत्ति का फायदा उठाने के लिए उत्पादक तरह-तरह के साधनों का सहारा लेते हैं। आज वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने का प्रमुख हथियार विज्ञापन है। विज्ञापन शब्द 'ज्ञापन' में 'वि' उपसर्ग लगाने से बना है, जिसका अर्थ है- विशेष जानकारी देना। यह जानकारी उत्पादित वस्तुओं, सेवाओं आदि से जुड़ी होती है। विज्ञापन में वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उपभोक्ता लालायित हों और इन्हें खरीदने के लिए विवश हो जाएँ। विज्ञापन के कारण उत्पादकों को अपनी वस्तुओं के अच्छे दाम मिल जाते हैं तो उपभोक्ता को वस्तुओं की जानकारी, तुलनात्मक दाम एवं चयन का विकल्प मिल जाता है। आजकल टी.वी., रेडियो के कार्यक्रम, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, भवनों की दीवारें विज्ञापनों से रंगी दिखाई पड़ती हैं।


मुद्रण



एक मास्टर फॉर्म या टेम्प्लेट का उपयोग करके किसी टेक्स्ट या/और छवि (इमेज) की अनेक प्रतियाँ बनाना मुद्रण या छपाई (प्रिंटिंग) कहलाता है। मुद्रण का इतिहास कम-से-कम तेरह-चौदह सौ वर्ष पुराना है। आधुनिक छपाई प्रायः कागज पर स्याही से मुद्रण मशीन के द्वारा की जाती है। इसके अलावा धातुओं पर, प्लास्टिक पत्र, वस्त्रे पर तथा अन्य मिश्रित पदार्थों पर भी छपाई की जाती है।

सामान्यतः मुद्रण का अर्थ छपाई से है, जो कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, टाट इत्यादि पर हो सकता है। डाकघरों में लिफाफों, पोस्टकार्डों व रजिस्टर्ड चिट्ठियों पर लगने वाली मुहर को भी 'मुद्रण' कहते हैं। प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान चार्ल्स डिकेंस ने मुद्रण की महत्ता को बताते हुए कहा है कि स्वतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व को बनाए रखने में मुद्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रारंभिक युग में मुद्रण एक कला था, लेकिन आधुनिक युग में पूर्णतया तकनीकी आधारित हो गया है। मुद्रण कला पत्रकारिता के क्षेत्र में पुष्पित, पल्लवित, विकसित तथा तकनीकी के रूप में परिवर्तित हुई है।

वैदिक सिद्धांत के अनुसार- परमेश्वर की इच्छा से ब्रह्माण्ड की रचना और जीवों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद 'ध्वनि' प्रकट हुआ। ध्वनि से 'अक्षर' तथा अक्षरों से 'शब्द' बने। शब्दों के योग को 'वाक्य' कहा गया। इसके बाद पिता से पुत्र और गुरु से शिष्य तक विचारों, भावनाओं, मतों व जानकारियों का आदान-प्रदान होने लगा। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने की प्रक्रिया को स्मृति का नाम दिया। ज्ञान के प्रसार का यह तरीका असीमित तथा असंतोषजनक था,  जिसके कारण मानव ने अपने पूर्वजों और गुरूजनों के श्रेष्ठ विचारों, मतों व जानकारियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की। इसके लिए लिपि का आविष्कार किया तथा पत्थरों व वृक्षों की छालों पर वैदिक सिद्धांत के अनुसार- परमेश्वर की इच्छा से ब्रह्माण्ड की रचना और जीवों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद 'ध्वनि' प्रकट हुआ। ध्वनि से 'अक्षर' तथा अक्षरों से 'शब्द' बने। शब्दों के योग को 'वाक्य' कहा गया। इसके बाद पिता से पुत्र और गुरु से शिष्य तक विचारों, भावनाओं, मतों व जानकारियों का आदान-प्रदान होने लगा। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने की प्रक्रिया को स्मृति का नाम दिया। ज्ञान के प्रसार का यह तरीका असीमित तथा असंतोषजनक था, बार जिसके कारण मानव ने अपने पूर्वजों और गुरूजनों के श्रेष्ठ विचारों, मतों व जानकारियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की। इसके लिए लिपि का आविष्कार किया तथा पत्थरों व वृक्षों की छालों पर  खोदकर लिखने लगा। इस तकनीकी से भी विचारों को अधिक दिनों तक | सुरक्षित रखना संभव नहीं था। इसके बाद लकड़ी को नुकीला छीलकर ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। प्राचीन काल के अनेक ग्रंथ भोजपत्रों पर लिखे मिले हैं।


(सन् 105 ई. में चीन नागरिक टस्क-त्साई लून ने कपास एवं सलमल की सहायता से कागज का आविष्कार किया। सन् 712 ई. में चीन में एक सीमाबद्ध एवं स्पष्ट ब्लॉक प्रिंटिंग की शुरुआत हुई। इसके लिए लकड़ी का ब्लॉक बनाया गया। चीन में ही सन् (1650 ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी सन् 1041 ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। इन अक्षरों को आधुनिक टाइपों का आदि रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाइपों का प्रयोग किया गया था। टाइपों के ऊपर स्याही जैसे पदार्थ को पोतकर कागज के ऊपर दबाकर छपाई का काम किया जाता था।


इस प्रकार, मुद्रण के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। यह कला यूरोप में चीन से गई अथवा वहाँ स्वतंत्र रूप से विकसित हुई, इसके संदर्भ में कोई आधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, कागज बनाने की कला चीन से अरब देशों में तथा वहाँ से यूरोप में पहुंची होगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक 14वीं-15वीं सदी के दौरान यूरोप में मुद्रण-कला का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। उस समय यूरोप में बड़े-बड़े चित्रकार होते थे। उनके चित्रों की स्वतंत्र प्रतिक्रिया को तैयार करना कठिन कार्य था। इसे शीघ्रतापूर्वक नहीं किया जा सकता था। अतः लकड़ी अथवा धातु की चादरों पर चित्रों को उकेरकर ठप्पा बनाया जाने लगा, जिस पर स्याही लगाकर पूर्वोक्त रीति से ठप्पे को दो तख्तों के बीच दबाकर उनके चित्रों की प्रतियाँ तैयार की जाती थीं। इस तरह के अक्षरों की छपाई का काम आसान नहीं था।

अक्षरों को उकेरकर उनके छप्पे तैयार करना बड़ा ही मुश्किल काम था। उसमें खर्च भी बहुत ज्यादा पड़ता था। फिर भी उसकी छपाई अच्छी नहीं होती थी। इन असुविधाओं ने जर्मनी के लॉरेंस जेंसजोन को छुट्टे टाइप बनाने की प्रेरणा दी। इन टाइपों का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1400 ई. में यूरोप में हुआ। जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने सन् 1440 ई. में ऐसे टाइपों का आविष्कार किया, जो बदल-बदलकर विभिन्न सामग्री को बहुसंख्या में मुद्रित कर सकता था। इस प्रकार के टाइपों को पुनरावर्तक छापे (रिपीटेबल प्रिण्ट) के वर्ण कहते हैं। इसके फलस्वरूप बहुसंख्यक जनता तक बिना रुकावट के समाचार और मतों को पहुँचाने की सुविधा मिली। इस सुविधा को कायम रखने के लिए बराबर तत्पर रहने का उत्तरदायित्व लेखकों और पत्रकारों पर पड़ा। जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् 1454-55 ई.में दुनिया का पहला छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) लगाया तथा सन् 1456 ई. में बाइबिल की 300 प्रतियों को प्रकाशित कर पेरिस भेजा। इस पुस्तक की मुद्रण तिथि 14 अगस्त, 1456 निर्धारित की गई है। जॉन गुटेनबर्ग के छापाखाने से एक बार में 600 प्रतियां तैयार की जा सकती थीं। परिणामतः 50-60 वर्षों के अंदर यूरोप में करीब 2 करोड़ पुस्तकें प्रिंट हो गयी थीं।


इस प्रकार, मुद्रण कला जर्मनी से आरंभ होकर यूरोपीय देशों में फैल गयी। कोलोन औग्सबर्ग, वेनिस, एन्टवर्ष, पेरिस आदि में मुद्रण के प्रमुख केंद्र बने। सन् 1475 ई. में सर विलियम केकस्टन के प्रयासों के चलते ब्रिटेन का पहला प्रेस स्थापित हुआ। ब्रिटेन में राजनैतिक और धार्मिक अशाति के कारण छापाखाने की सुविधा सरकार के नियंत्रण में थी। इसे स्वतंत्र रूप से स्थापित करने के लिए सरकार से विधिवत आज्ञा लेना बड़ा ही कठिन कार्य था। पुर्तगाल में इसकी शुरुआत सन् 1544 ई. में हुई।


मुद्रण के इतिहास की पड़ताल से स्पष्ट है कि छापाखाना का विकास धार्मिक क्रांति के दौर में हुआ। यह सुविधा मिलने के बाद धार्मिक ग्रंथ बड़े ही आसानी से जन-सामान्य तक पहुंचने लगे। ये धार्मिक ग्रंथ विभिन्न देशों की भाषाओं में अनुवाद होकर प्रकाशित होने लगे। पुर्तगाली धर्म प्रचार के लिए मुद्रण तकनीकी को सन् 1556 ई. में गोवा लाये और धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने लगे। सन् 1561 ई. में गोवा में प्रकाशित बाइबिल पुस्तक की एक प्रति आज भी न्यूयार्क लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इससे उत्साहित होकर भारतीयों ने भी अपने धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने का साहस दिखलाया। भीम जी पारेख प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने दीव में 1670 ई. में एक उद्योग के रूप में प्रेस शुरू किया।


सन् सन् 1638 ई. में पादरी जेसे ग्लोभरले ने एक छापाखाना जहाज में लादकर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उनके सहयोगी म्याश्यु और रिटेफेन डे ने उक्त छापाखाना (प्रिंटिंग प्रेस) को स्थापित किया। सन् 1798 ई. में लोहे के प्रेस का आविष्कार हुआ, जिसमें एक लिवर के द्वारा अधिक संख्या में प्रतियाँ प्रकाशित करने की सुविधा थी। सन् 1811 ई. के आस-पास गोल घूमने वाले सिलेण्डर चलाने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल होने लगा, जिसे आजकल रोटरी प्रेस कहा जाता है। हालांकि इसका पूरी तरह से विकास सन् 1848 ई. के आस-पास हुआ। 19वीं सदी के अंत तक बिजली संचालित प्रेस का उपयोग होने लगा, जिसके चलते न्यूयार्क टाइम्स के 12 पेजों की 96 हजार प्रतियों का प्रकाशन एक घंटे में संभव हो सका। सन् 1890 ई. में लिनोटाइप का आविष्कार हुआ, जिसमें टाइपराइटर मशीन की तरह से अक्षरों को सेट करने की सुविधा थी। सन् 1890 ई. तक अमेरिका समेत कई देशों में रंग-बिरंगे ब्लॉक अखबार छपने लगे। सन् 1900 ई. तक बिजली संचालित रोटरी प्रेस, लिनोटाइप की सुविधा और रंग-बिरंगे चित्रों को छापने की सुविधा, फोटोग्राफी को छापने की व्यवस्था होने से सचित्र समाचार-पत्र पाठकों तक पहुँचने लगे।


रेडियो और टेलीविजन विज्ञापन


 रेडियो और टीवी विज्ञापन के बीच सबसे स्पष्ट अंतर प्रारूप का है। रेडियो विज्ञापन विशुद्ध रूप से ऑडियो है, जबकि टीवी विज्ञापन ऑडियो और विजुअल है। यह एक साधारण अंतर प्रतीत हो सकता है लेकिन यह निर्णयकर्ता के दिल तक पहुँच जाता है कि कुछ उत्पादों के लिए, कौन-सा प्रारूप उपयुक्त है। बिक्री के बिंदुओं के साथ विशिष्ट उत्पाद जो दृश्य कतारों पर भारी निर्भर करते हैं, संभवतः रेडियो के लिए उपयुक्त नहीं होंगे, क्योंकि उपभोक्ता के पास दृश्य मूल्यांकन के साथ विज्ञापन को बढ़ाने का कोई तरीका नहीं है। इसके विपरीत, आसानी से समझ में आने वाले लाभ वाले उत्पाद, जिनसे लोग परिचित हैं अपने स्वयं के अक्सर रेडियो विज्ञापन के साथ पनपने की कल्पना कर सकते हैं।

टीवी विज्ञापन या टीवी कमर्शियल, जिसे अक्सर बस कमर्शियल, विज्ञापन, ऐड या ऐड फिल्म कहा जाता है- संदेश पहुंचाने वाले किसी संगठन द्वारा किए गए भुगतान के तहत उसके लिए निर्मित टीवी कार्यक्रम का एक विविध रूप है। विज्ञापन से प्राप्त होने वाला राजस्व अधिकांश निजी स्वामित्व वाले टीवी नेटवर्को के लिए वित्तपोषण के एक बहुत बड़े हिस्से का निर्माण करता है। आजकल के अधिकांश टीवी विज्ञापनों में संक्षिप्त विज्ञापन अंश शामिल होते हैं, जो कुछ सेकंड से लेकर कई मिनट तक चल सकते हैं। टीवी के इस्तेमाल के आरम्भ से ही इस तरह के विज्ञापनों का इस्तेमाल तरह-तरह के उत्पादों, सेवाओं और विचारों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता रहा है।


विज्ञापन देखने वाली जनता पर वाणिज्यिक विज्ञापनों का काफी सफल और व्यापक असर पड़ा है।


कंप्यूटर तथा इंटरनेट माध्यम में प्रयुक्त हिंदी भाषा


भारत में कंप्यूटरों का प्रयोग अभी एक सीमित वर्ग ही कर पा रहा है। विशेष रूप से हिंदी में कंप्यूटर का प्रयोग काफी सीमित है। इसका सही लाभ तब होगा जब इसका प्रयोग देश के कोने-कोने तक पहुँच जायेगा। इस संदर्भ में कई लोग और कई कम्पनियाँ काम कर रही हैं। हिंदी में विकीपीडिया इस तरफ बढ़ा हुआ एक अभूतपूर्व कदम है। इससे वह सारी जानकारी आम लोगों तक पहुँच सकेगी जो अन्य किसी साधन से दुर्लभ है। कंप्यूटरों का प्रयोग आम लोग तब शुरू करेंगे जब इसमें लिखी हुई जानकारी उनकी अपनी भाषा में हो। जितने ज्यादा लोग इंटरनेट पर ज्यादा से ज्यादा जानकारी हिंदी और अन्य प्रचलित भाषाओं में लिखेंगे उतनी ही जल्दी यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा।

 हिंदी कंप्यूटरी (हिंदी कंप्यूटिंग या हिंदी सङ्गणन), भाषा कंप्यूटरी का एक प्रभाग है जो हिंदी भाषा से संबंधित सकल कार्यों को कंप्यूटर, मोबाइल या अन्य डिजिटल युक्तियों पर कर पाने से संबंधित है। यह मुख्यतः उन साफ्टवेयर उपकरणों एवं तकनीकों से संबंध रखता है जो कंप्यूटर पर हिंदी के विविध प्रकार से प्रयोग में सुविधा प्रदान करते हैं। यद्यपि यह शब्द भाषित रूप से नहीं था, सही शब्द देवनागरी कंप्यूटरी

कंप्यूटिंग हो सकता था, परन्तु बाद में उपरोक्त विश्व के लिए वही शब्द प्रचलित हो गया।


कंप्यूटर और इंटरनेट ने पिउने वर्षों में विश्व में सूचना क्रांति ला दी है। आज कोई भी भाषा कंप्यूटर (तथा कंप्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नहीं रह सकती। कंप्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कंप्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिसके कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कंप्यूटर अंग्रेजी के सिवाय किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नहीं कर सकता। किंतु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी।


इस समय हिंदी में सजाल (websites), चिट्ठे (Blogs), विपत्र (email), गपशप (chat), खोज (web-search), सरल मोबाइल संदेश (SMS) तथा अन्य हिंदी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय इंटरनेट पर हिंदी में संगणन के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये भाषा-कंप्यूटिंग के सॉफ्टवेयर आते जा रहे हैं। लोगों में इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करते हुए अपना, हिंदी का और पूरे हिंदी समाज का विकास करें।


एक सर्वे के अनुसार, भारत में देखे जाने वाले ऑनलाइन वीडियो में 58% विडियो हिंदी में होते हैं जबकि केवल 16% अंग्रेजी में।


1. मई, 2019 में गूगल ने कहा था कि खोज (सर्च) करने के लिए भारत के अधिकांश लोग हिंदी पसंद करते हैं।


2. गूगल अब पूरे हिंदी वेबपेज को पढ़कर सुना सकता है।


3. अगस्त, 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने 3 भाषाओं में न्यूरल नेटवर्क पर आधारित पाठ-से-वाक सेवा शुरू की।


4. सितंबर, 2019 में गूगल के आँकड़ों के अनुसार, पूरे विश्व में, गूगल असिस्टेंट का दूसरा सबसे अधिक उपयोग हिंदी में हो रहा है।


5. यह भी समाचार है कि हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में टाइपोग्राफी का महत्व बढ़ा है 

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