सिनेमा में क्षेत्रीय हिन्दी का प्रयोग।।हिंदी सिनेमा की भाषिक विशेषताएं

  सिनेमा में क्षेत्रीय हिन्दी का प्रयोग

हिंदी सिनेमा की भाषिक विशेषताएं



हिन्दी को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने में हिन्दी सिनेमा के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। यह एक ऐसे माध्यम के रूप में हमारे बीच में है जो अपने आप में कई कलाओं और संस्कृतियों को समेटे हुए है। समय के साथ हिन्दी सिनेमा की तस्वीर भी बदल रही है। आज हिन्दी फिल्मों को लेकर नए-नए प्रयोग ज्यादा हो रहे हैं। फिल्मों के विषय चयन, संवाद लेखन और पटकथा तक में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव दिखने लगा है। हालाँकि इस तरह के प्रयोग बॉलीवुड में पहले से ही होते आ रहे हैं, लेकिन आजकल ये प्रयोग ज्यादा बढ़ गए हैं।


14 मार्च 1934 में जब हिन्दी फिल्मों का सफर शुरु हुआ तो हिन्दी भाषा अपने असली रूप में थी, पर आज पान सिंह तोमर, उड़ता पंजाब, तन्नु वेड्स मन्नु, गैंग्स ऑफ वासेपुर, दंगल, सुल्तान, दम लगा के हाईसा, टायलेट एक प्रेमकथा, बॉस जैसी फिल्मों ने हिन्दी सिनेमा में भाषा के ट्रेन्ड को बदला और फिल्मों में हिन्दी के साथ ही क्षेत्रीय भाषा का इस्तेमाल होने लगा। उन क्षेत्रों में हिन्दी बोलने के अन्दाज से फिल्मों में अलग-अलग राज्यों के भाषा की सौंधी खुशबू आती है।


सिनेमा के मुख्य किरदार के संवाद अब क्षेत्रीय बोली में लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए तन्नु वेड्स मन्नु की मुख्य किरदारं कंगना उर्फ कुसुम अपना परिचय देती हुई कहती है- "मारा नाम कुसुम सागवान सा, जिला झज्जर, फोन नम्बर दू कोना"। दरअसल, इस संवाद के जरिये हरियाणवी भाषा को भी व्यापक स्तर पर पहचान मिलती है। ऐसे ही बाजीराव मस्तानी में रणवीर उर्फ बाजीराव पेशवा की जगह मराठी भाषा, गैंग्स ऑफ वासेपुर में बिहारी, उड़ता पंजाब में पंजाबी या बिहारी, दंगल एवं सुल्तान में हरियाणवी और किसी-किसी फिल्मों में गुजराती का इस्तेमाल होता है। जैसे- चुपके, कुछ-कुछ लोचा है, बागवान, ओ एम जी (OMG) खिचड़ी, पानसिंह तोमर, टायलेट एक प्रेमकथा, दम लगा के हाईसा में ब्रज भाषा हिन्दी के साथ मिश्रित होकर लोगों तक पहुँचती है।


फिल्मों के संवाद और विषय-चयन के अलावा हिन्दी फिल्मों के गाने भी क्षेत्रीय भाषा और बोली की शब्दावली के हिसाब से बनने लगे हैं। जहाँ हिन्दी सिनेमा में खड़ी बोली का इस्तेमाल किया जाता रहा है जैसे कि पीयूष मिश्रा का गाना "आरंभ है प्रचंड बोलो मस्तके के झुंड, आज जंग की घड़ी की तुम गुहार हो" जैसी हिन्दी के गीत लिखे वहीं उसी हिन्दी सिनेमा में अब 'जिया हो बिहार के लाला, जीया तु हज़ार साला, मैं घनी बॉवली हो गई, ऐसी धाकड़ है, बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है, घूमर जैसे क्षेत्रीय शब्दावली के साथ गीतों में नये-नये प्रयोग भी किए जाते हैं।


फिल्म और साहित्य दोनों ही समाज का दर्पण माने जाते हैं। दर्पण वही दिखाता है जो सच है। ऐसे में समाज फिल्मकार जो फौजी से बागी बने, पानसिंह तोमर पर फिल्म बनाते हैं ती इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि पानसिंह तोमर जिस पृष्ठभूमि से आता है। वो अपनी बोलचाल में भी वहीं का रहे इसीलिए संवाद लेख "हमायई माँ को बन्दूक की बट्ट तो मारो" जैसे संवाद दिखता है।

 परिवर्तन प्रकृति का नियम है और भाषा के चयन को लेकर भी अब बदलाव हो रहे हैं। जैसे हिन्दी सिनेमा में आए कुछ गाने जैसे - Party All Night (Boss), DJ Wale Babu भाषा को बदल रहे हैं। इस बदलाव से हिन्दी भाषा को कितना नुकसान पहुँचा है और कितना फायदा। इस विषय पर सबकी अपनी अलग-अलग राय हो सकती है। मूलतः हिन्दी फिल्मों में क्षेत्रीय भाषा के प्रभाव से हिन्दी का स्तर गिरां नहीं बल्कि क्षेत्रीय भाषा एक बड़े समूह तक पहुँची है और सब ने इसे स्वीकारा भी है। जैसे- हमारा दिल तुम्हारे पांस है, में पंजाबी व बंगाली, दक्षिण भारतीय और हिन्दुओं के परिवारों को साथ होते दिखाया है। अगर इस बदलाव से हिन्दी भाषा या हिन्दी फिल्मों को कोई नुकसान होता तो इस प्रयोग के दौर से मोहनजोदारो और जोधा-अकबर जैसी खड़ी हिन्दी में फिल्में नहीं बनती। हाँ, ये जरूरी है कि आज बालीवुड में ज्यादातर फिल्मों में खिचडी भाषा का प्रयोग होता है। जिसमें अग्रेजी में सब होता है लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल से हिन्दी भाषा खराब नहीं हो रही बल्कि वह और समृद्ध हो रही है। इसके साथ ही क्षेत्रीय भाषा और बोली भी संरक्षित. हो रही है क्योंकि वह किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रहती।

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