एक पीली शाम।। कविता ।।शमशेर बहादुर सिंह

 

एक पीली शाम


शमशेर बहादुर सिंह


एक पीली शाम

पतझर का ज़रा अटका हुआ पत्ता

शांत

मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल

कृश म्लान हारा-सा

(कि मैं हूँ वह

मौन दर्पण में तुम्हारे कहीं?)

वासना डूबी

शिथिल पल में

स्नेह काजल में

लिए अद्भुत रूप-कोमलता

अब गिरा अब गिरा वह अटका हुआ आँसू

सांध्य तारक-सा

अतल में।

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