सींग और नाख़ून।। कविता।। शमशेर बहादुर सिंह

 


सींग और नाख़ून

    शमशेर बहादुर सिंह


    सींग और नाख़ून

    लोहे के बक्तर कंधों पर।

    सीने में सूराख़ हड्डी का।

    आँखों में ׃ घास-काई की नमी।

    एक मुर्दा हाथ

    पाँव पर टिका

    उलटी क़लम थामे।

    तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है।

    जड़ों का भी कड़ा जाल

    हो चुका पत्थर।

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