संप्रेषण का अर्थ और महत्त्व

 संप्रेषण का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए ?

     सम्प्रेषण की अवधारणा और महत्त्व


(i) सम्प्रेषण की अवधारणा

आज सम्प्रेषण शब्द अंग्रेजी कम्युनिकेशन (Communication) का समानार्थी माना जाता है। कम्युनिकेशन शब्द लैटिन भाषा के कम्युनिस (Communis) से बना है जिसका अर्थ सम्प्रेषण है। इस प्रकार सम्प्रेषण संदेश सम्प्रेषण की वह प्रक्रिया है जिसमें सम्प्रेषक एवं श्रोता आपस में आचार, विचार, ज्ञान, अनुभवों तथा भावनाओं का कुछ संकेतों द्वारा आदान-प्रदान करता है।


सम्प्रेषण की परिभाषाएँ-


सम्प्रेषण को लेकर विभिन्न विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं। जैसे-

'कुण्ट्ज एवं ओ' डोनेल के अनुसार- "Communication is the transfer of information from one person to another whether or not it elicits confidence".

अर्थात् सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं का हस्तांतरण है, चाहे वह उसमें विश्वास व्यक्त करे या न करे।

सी. जी. ब्राउन का मानना है- "Communication has been defined as the transfer of information from one person to another, whether or not it elicits confidence or becomes an exchange of interchange But the information transferred must be understandable to receiv ers."

अर्थात् सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मध्य सूचनाओं का सम्प्रेषण है चाहे उसके द्वारा विश्वास उत्पन्न हो या नहीं और पारस्परिक विनिमय हो या नहीं, लेकिन इस प्रकार दी गई सूचना प्राप्तकर्ता को समझ आ जानी चाहिए।

थियोहेमैन का कहना है- "Communication means the process of passing information and understanding from one person to another

अर्थात् सम्प्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना तथा समझ पहुँचाने की प्रक्रिया है।


उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि सम्प्रेषण एक व्यवस्थित एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने संदेशों, तथ्यों, विचारों, भावनाओं तथा सम्मतियों आदि का आपस में आदान-प्रदान करते हैं जिससे व्यावसायिक उद्देश्यों एवं व्यवहार में एकरूपता आती है।

अपनी इच्छाओं एवं विचारों को दूसरों पर व्यक्त करना तथा दूसरों की इच्छाओं एवं सूचनाओं को जानना हर व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। मनुष्य की इसी स्वाभाविक प्रवृत्ति का विस्तार सम्प्रेषण के द्वारा ही सम्भव है। सम्प्रेषण मनुष्य ही नहीं समाज की भी आवश्यकता है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा कि सम्प्रेषण के बिना किसी प्रकार के समाज का निर्माण ही सम्भव नहीं है। मानव सम्यता तथा समाज के विकास में सम्प्रेषण की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


सम्प्रेषण की अवधारणा निम्नलिखित विशेषताओं से स्पष्ट हो जाती है-

क) सम्प्रेषण दो तरफा प्रक्रिया है। कोई व्यक्ति अपने आप से सम्प्रेषण नहीं करता। इसके लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। एक संदेश भेजने वाला तथा दूसरा संदेश प्राप्त करने वाला। कुछ लोग अन्तः वैयक्तिक सम्प्रेषण को भी सम्प्रेषण का एक प्रकार मानते हैं। इसमें प्रेषक और प्रापक एक ही व्यक्ति होता है। वास्तव में यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। सम्प्रेषण केवल संदेश भेजने से ही पूर्ण नहीं होता। यह तभी पूर्ण होता है जब संदेश प्राप्तकर्ता भेजने वाले के अर्थ को समझे तथा अपनी प्रतिक्रिया भेजकर उसे अपने विचारों के से अवगत कराए।

(ख) इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसमें सूचनाओं एवं विचारों दोनों का आदान-प्रदान सम्मिलित है।

(ग) सम्प्रेषण एक व्यापक प्रक्रिया है। इसमें एक व्यक्ति अपने विचारों से दूसरे पक्ष को अवगत कराता है। उनसे विचार-विमर्श करता है। एक अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अनेक आदेश एवं निर्देश देता है कर्मचारी भी अपनी समस्याएँ, अपने सुझाव अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार यह क्रम निरन्तर चलता रहता है।


(घ) सम्प्रेषण प्रबन्ध-प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। बिना निदेशन के कोई भी प्रबन्धकीय कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। निदेशन कार्य को प्रभावशाली ढंग से सम्पन्न करने के लिए अभिप्रेरण एवं कुशल नेतृत्व की आवश्यकता होती है। इसमें सम्प्रेषण के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।


(ङ) सम्प्रेषण कार्यों के निष्पादन की आधारशिला है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सम्प्रेषण द्वारा ही व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। कर्मचारियों को कब, कहाँ और कौन से कार्य करने हैं, कम्पनी को लाभ कैसे हों, इन सब बातों का समाधान सम्प्रेषण के पारस्परिक आदान-प्रदान से ही होता है।

 (च) सम्प्रेषण में संदेशों के आदान-प्रदान के लिए विविध माध्यमों का सहारा लिया जाता है। जैसे- मौखिक, लिखित, सांकेतिक, औपचारिक, अनौपचारिक आदि ।


(छ) सम्प्रेषण के कई प्रकार होते हैं जैसे- ऊर्ध्वमुखी, अधोमुखी आदि । आधुनिक युग में सम्प्रेषण के समस्त प्रकार प्रयोग में लाए जाते हैं क्योंकि इन्हीं पर संस्था की सफलता निर्भर करती है।


(ज) सम्प्रेषण एक प्रशासकीय कार्य है क्योंकि जब सम्प्रेषण का प्रयोग व्यावसायिक क्षेत्र में किया जाता है तब सामान्यतया इसकी प्रकृति प्रशासकीय हो जाती है। चार्ल्स ई. रेडफील्ड ने माना है- प्रशासकीय सम्प्रेषण मात्र सूचना के विनिमय से सम्बन्धित ही नहीं है अपितु प्रशासन से भी सम्बन्धित है। किसी संगठन की सम्प्रेषण सम्बन्धी समस्याओं तथा कर्मचारियों की कार्य पद्धतियों से जुड़ी समस्याओं में कोई अन्तर नहीं है।


     संप्रेषण का महत्व


सम्प्रेषण का महत्त्व एवं उपयोगिता हर युग एवं कालखंड में रही है। जब मानव अपनी आदिम अवस्था में था तब भी वह सम्प्रेषण पर ही निर्भर था और आज भी वह अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परस्पर सूचना तथा संकेत भेजता है। अन्तर केवल इतना है कि आज जन माध्यमों के बढ़ते प्रभाव के कारण समय एवं स्थान की दूरी कम हो गई है तथा पूरा विश्व एक परिवार में बदल रहा है। ऐसी स्थिति में सम्प्रेषण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी हो गया है।


कीथ डेविस के अनुसार- सम्प्रेषण व्यवसाय के लिए उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रक्तधारा आवश्यक है।


(क) सम्प्रेषण मनुष्य के लिए उपयोगी- सम्प्रेषण मनुष्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सम्प्रेषण के माध्यम से मनुष्य अपनी भावनाओं तथा विचारों को दूसरों के सम्मुख व्यक्त करता है तथा दूसरों की भावनाओं और विचारों से भी अवगत होता है। मनुष्य जब बहुत दुःखी तथा चिन्ताग्रस्त होता है तो वह अपने मानसिक बोझ को दूसरों के सामने अभिव्यक्त करके चिन्तामुक्त हो जाता है। पारस्परिक सम्पर्क से वह अपने ज्ञान की वृद्धि करता है तथा नित नई-नई बातें भी सीखता है।


(ख) सम्प्रेषण मानव समाज का आधार - सम्प्रेषण प्रणाली मानव एवं मानव समाज का आधार है। मानव समाज के विकास के साथ-साथ सम्प्रेषण के अनेकानेक रूप भी विकसित हो रहे हैं। आज हम विश्व-परिवार की दिशा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस दिशा में सार्थक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि हम सम्प्रेषण के संदर्भ में एक सकारात्मक सोच को विकसित करें क्योंकि सकारात्मक सोच के सहारे ही हम जीवन में विकसित हो सकते हैं, नकारात्मक सोच से हमारा विकास का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है। यही कारण है कि आज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दोनों दृष्टियों से सूचना एवं सम्प्रेषण का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। सूचना सम्प्रेषण के इतने माध्यम उपलब्ध हैं कि हम घर बैठे ही सात समुन्द्र पार की घटनाओं से अवगत हो जाते हैं। हम घर बैठे ही दूर-दराज स्थित लोगों से बातचीत कर लेते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों के निर्धारण तथा समस्याओं के समाधान में सम्प्रेषण- प्रक्रिया काफी महत्त्वपूर्ण है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न देशों, विभिन्न संस्कृतियों एवं समाजों के मध्य निकटता लाने में सूचना प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है।


(ग) व्यावसायिक महत्त्व - सम्प्रेषण प्रणाली का महत्त्व सबसे अधिक व्यावसायिक स्तर पर है। सभी व्यावसायिक क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्हें अनेक विभागों में विभाजित कर दिया जाता है, जैसे- क्रय विभाग, विक्रय विभाग, उत्पादन विभाग, वितरण विभाग, वित्त विभाग आदि । व्यवसाय की सफलता के लिए इन सभी विभागों में समन्वय की आवश्यकता होती है और समन्वय स्थापित करने के लिए प्रभावी सम्प्रेषण अत्यन्त जरूरी है।


(घ) प्रबन्धकीय कार्यों का आधार- प्रबन्धकीय कार्यों के निष्पादन में भी सम्प्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सम्प्रेषण के अभाव में प्रायः सभी प्रबन्धकीय कार्य असफल रहते हैं। सम्प्रेषण को प्रबन्ध के विभिन्न कार्यों जैसे- नियोजन, संगठन, निदेशन, नेतृत्व एवं अभिप्रेरण आदि का आधार माना जाता है। पीटर्स का कहना है- अच्छा सम्प्रेषण सुदृढ़ प्रबन्ध की नींव है।


(ङ) शीघ्र निर्णय एवं उसका कार्यान्वयन- किसी भी कार्यालय में प्रबन्धकों को कदम-कदम पर अनेक निर्णय लेने होते हैं। उन निर्णयों एवं सूचनाओं को वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को बताते हैं। इसके लिए वे सम्प्रेषण व्यवस्था का सहारा लेते हैं। सम्प्रेषण जितना प्रभावी होगा कार्य भी उतना ही शीघ्रता एवं सुगमतापूर्वक होगा।


(च) मानवीय सम्बन्धों की स्थापना- रॉबर्ट डी. बर्थ के शब्दों में- "बिना सम्प्रेषण के मानवीय सम्बन्धों की स्थापना तथा बिना मानवीय सम्बन्धों की स्थापना के सम्प्रेषण असम्भव है।" अधिकारी वर्ग एवं कर्मचारियों के बीच यदि सकारात्मक सम्प्रेषण होगा तो उनके मध्य मानवीय सम्बन्ध होंगे। यदि अधिकारी वर्ग कर्मचारियों की समस्याएँ सुनेंगे, उनका समाधान करेंगे, उनकी कार्यक्षमता के अनुसार एक अनुकूल वातावरण तैयार करेंगे तो कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा और कार्य सुचारू रूप से होगा। कार्यालय में भी शान्तिमय वातावरण बना रहेगा तथा प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य मधुर एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना होगी।


(छ) भ्रम निवारण- कोई भी सूचना एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे व्यक्ति तक जाते-जाते विकृत रूप ले लेती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि लोगों के मध्य भ्रान्ति फैल जाती है। इस भ्रान्ति का निवारण सम्प्रेषण के द्वारा ही हो सकता है। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि अधिकारी वर्ग तथा कर्मचारियों के बीच प्रत्यक्ष बातचीत हो जिससे कोई भ्रान्त धारणा न फैले और यदि फैल गई है तो वह दूर हो जाए। 

(ज) बाह्य पक्षों से सम्पर्क- सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व किसी कार्यालय में आन्तरिक प्रबन्ध करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि बाह्य पक्षों से सम्पर्क बनाए रखने के लिए भी है। प्रबन्धकों को ग्राहकों, अन्य व्यापारियों, विज्ञापन करने वाली संस्थाओं, समाज के लोगों आदि से निरन्तर सम्पर्क रखना होता है। व्यवसाय को सही ढंग से चलाने के लिए तथा व्यावसायिक हितों का पोषण करने के लिए बाह्य पक्षों से निरन्तर सम्पर्क रखा जाना अत्यावश्यक है। इससे एक ओर व्यापार की ख्याति में वृद्धि होती है दूसरी ओर संस्था एवं बाह्य पक्षों के मध्य मधुर एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना भी होती है। इस प्रकार सम्प्रेषण एवं सूचना प्रक्रिया का व्यावहारिक महत्त्व एवं उपयोगिता आज स्वयं सिद्ध है।

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